मूलाराम की चतुराई | Story of a wise man

Really, the old people have more wisent from us . This story tells such a drama that shows the wise ness of old people.

मूलाराम की चतुराई की कहानी -

  • एक बार एक पंडित जी जंगल के रास्ते से अपने गाँव आ रहे थे। 
पंडित जी बहुत हट्टे-कट्टे और बहादुर इंसान थे। वे 
कुश्ती के तगड़े शौकीन भी थे।
जंगल के रास्ते पर अपनी मौज में गुनगुनाते हुए पंडित जी चले जा रहे थे कि अचानक सामने से शेर आ गया।




पंडित जी की साँसें थम गई। जान हथेली पर आ गई और
बेहाल हो गए। शेर जोर की दहाड़ मार कर पंडित जी पर उछल पड़ा और पंडित जी को भी और कुछ न सूझा, पंडित जी ने भी शेर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और 
खुद को शेर से बचाते हुए उसे पकड़ कर उसके ऊपर बैठ गए और कुछ देर तक कशमकश के बाद पंडित जी ने शेर को मार दिया।

पंडित जी ने शेर के कान काटकर जेब में रख लिए ताकि राजा को दिखाकर अपनी बहादुरी का ईनाम ले सके। पंडित जी के जाते ही वहाँ कुछ सैनिक आ गए और उन्होंने मरे हुए शेर को देखकर शेर की पूंछ काट ली और सोचा राजा को क्या पता कि शेर को किसने मारा है और हमें ईनाम मिल जाएगा।

पर इतेफाक ऐसा हुआ कि पंडित जी और सैनिक एक ही समय पर दरबार पहुँचे। अब पंडित जी और सैनिक अपनी-अपनी जिद पर अड़ गए और राजा के लिए ये फैसला मुसीबत बन गया।

तब राजा ने उन सभी को मूलाराम के पास जाने की सलाह दी और कहा कि अब वही तुम्हारा फैसला करेंगे।
पंडित जी और सैनिक मूलाराम के गाँव जा पहुँचे। 




मूलाराम से मिले और सारी बात बताई।
मूलाराम ने उन्हें कहा - बस इतनी सी बात ! ये तो मैं बता ही दूँगा पर आप आए हैं तो आज-आज तो ठहरिए| 

पंडित जी और सैनिक ठहरने के लिए राजी हो गए ।

शाम हुई, सबने खाना खाया। मूलाराम जी जरा बाहर चले गए थे और उनका लड़का पंडित जी और सैनिकों के पास आकर बोला कि "मेरे पिताजी भी यहीं सोएंगे पर दिक्कत ये है कि उनको कभी-कभी दौरे आते हैं और अगर उन्हें रात को दौरे आ जाए तो जरा ध्यान रखना, क्योंकि फिर वो आपको जान से भी मार सकते हैं" ।

ये मूलाराम जी ने ही अपने बेटे से कहलवाया था।

अब रात हुई, सब सो गए पर सैनिकों के बारह बजे हुए थे । एक कोने में दुबके पड़े थे। वहीं पंडित जी निश्चिन्त होकर खर्राटे ले रहे थे।

तभी मूलाराम जी हिलने लगे। फिर जोर-जोर से चिल्लाकर कूदने लगे , सारे सैनिक डर के मारे वहाँ से निकल भागे पर पंडित जी ने मूलाराम को पकड़ कर काबू कर लिया तो मूलाराम बोले - अरे भई छोड़ दे, हो गया फैसला। वो कायर सैनिक कहाँ से शेर मारेंगे।

मूलाराम जी ने पंडित जी के साथ लिखवा भेजा कि शेर पंडित जी ने ही मारा है और पंडित जी को अपना ईनाम मिल गया।


3 comments: