best friendship day poems in hindi | friends forever..

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दुनिया का एकमात्र रिश्ता जो खून का रिश्ता न होकर भी सबसे गहरा होता है । 

दोस्ती में हर एक बात , हर सुख-दुख साझा किए जाते हैं। दोस्ती निश्छल और निष्कपट प्रेम का रिश्ता है । friend ship day मनाने का इतिहास |

इसीलिए मैंने दोस्ती पर कुछ कविताएं लिखी हैं...
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                                    (1)
                     ऐ दोस्त , तेरी दोस्ती में अगर
जान भी गई तो क्या गई
तू नहीं था पास मेरे जब
हवा भी दो बात सुना गई

तू मेरी कमियाँ बता देता है
बिना किसी हिचकिचाहट के
मौका मिले तो तू भी उड़ान भरना
मेरे पंखों की फड़फड़ाहट से

तेरे जैसा दोस्त जमीं पर तो क्या
आसमान में भी नहीं
पूछा हमने तो खुदा बोला
गीता क्या, कुरान में भी नहीं

तेरी बातों के सागर में
बहता रहूँ मैं सारी उमर
तेरी दोस्ती की छाँव में चलते-चलते
मेरी जिंदगी जाए गुजर
                                             - नवीन चौधरी


*जब पुराने दोस्तों से मुलाकात होती है और फिर बिछड़ना होता है तो कैसा महसूस होता है-
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                                    (2)

दोस्तों से मिलकर आज भी
न जाने कितने गम भूल जाता हूँ

थोड़ी देर पहले उदास दिल को
हँसते हुए पाता हूँ

उनकी बहकी-बहकी बातें सुनकर
खूब ठहाके लगाता हूँ

घर जाने का वक्त हो आए तो 
नई-नई बातें बनाता हूँ

फिर चल पड़ते सब अपने घर को
मैं भी दिल को समझाता हूँ

महफिल से अपने घर तक जाते-जाते
दोस्ती के गीत गाता हूँ

घर आ गया, ये कहकर
                        मैं खुद को जगाता हूँ
                                                      - नवीन चौधरी

*ये कविता दोस्ती के रिश्ते को बयां करती हुई दोस्ती के प्रति और अधिक भावुक करती है । 
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    (3)

दोस्ती तो वो अनमोल रिश्ता है
जो मुफ्त में मिलता है

दुखों का पौधा वहाँ न उगेगा
जहाँ दोस्ती का फूल खिलता है

सच्चा दोस्त सूरज की तरह होता है
अपनी जगह से कभी न हिलता है

सारे गमों से दूरियाँ बना लेता है 
जो एक बार इस रिश्ते को सिलता है

दोस्ती ही संभालती है इंसान को
जब वह सही रास्ते से फिसलता है

दोस्त का हाथ थामे दुनिया से भी लड़ जाएं
अकेले को तो झोंका भी मसलता है
                                                      - नवीन चौधरी

*अगली कविता बचपन की दोस्ती, दोस्तों के साथ खेले खेल, स्कूल जाना इन्हीं सब बातों की झलक याद करवाती है -
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   (4)
ए दोस्त.....
तेरे साथ वो उछलना कूदना
तेरा छिपना, मेरा आँखें मूँदना

गर्मियों में सुबह-सुबह स्कूल जाना
पहले खूब रोना, फिर सब भूल जाना

गर्म लुओं में भी खेलना ना छोड़ते थे
रोज कितने कंचे हम फोड़ते थे

अंधेरे में भी ना जाने कैसे खेलते रहते थे
और घर जाने की बात को धकेलते रहते थे

इतनी सर्द सुबहों में भी , हम नहीं रूकते थे
गिल्ली डंडे के सामने सब खेल झुकते थे

उस गिल्ली को देख आँखें न जाने कहाँ खो जाती थी
फिर स्कूल जाने को हर रोज देर हो जाती थी

फिर डरते हुए घर के अंदर दाखिल हो जाता था
वो डाँट खाकर न जाने मुझे क्या हासिल हो जाता था

दोस्त...तेरे साथ बिताए पल जन्नत थे मेरे लिए
काश! वो सूरज अब भी आता वही सारे सवेरे लिए..

                                                 - नवीन चौधरी


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