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प्रेरक, रोचक और मनोरंजक कहानियाँ
अनदेखी व अनसुनी
(1) जितना भाग्य में लिखा है
तो भाईयों बात है उस समय की जब एक जमींदार बाजरा बोने के लिए खेत पहुँच जाता है और हल जोड़कर राम का नाम लेकर बैल को चलाना शुरू कर देता है।
भगवान उसे देखकर सोचते हैं कि क्यों न इस इंसान की परीक्षा ली जाए और देखा जाए कि ये कितना लोभी और कितना लालची प्रवृति का व्यक्ति है ।
भगवान ने एक महाराज का रूप धारण कर उसके खेत में दस्तक दी और उससे पानी पिलाने को कहा। जमींदार तुरंत महाराज जी को डेरे पर ले गया और पानी पिलाया ।
जमींदार- महाराज जी क्या लगता है इस बार कितना बाजरा हो सकता है?
महाराज- देख भाई, इस बार तेरे खेत में बाजरा होगा सौ मण!
ये कहकर महाराज वहाँ से विदा हो गए।
थोड़े दिनों में अच्छी बारिश हुई और जमींदार की फसल देखते ही देखते कटाई करने लायक हो गई। जमींदार की मेहनत रंग ले आई और आस पास के सभी खेतों से ज्यादा अच्छी फसल उसके खेत में नजर आती थी।
जमींदार ने फसल काटना शुरू कर दिया और आस पास के लोगों ने भी कटाई शुरू कर दी । पर जमींदार के मन में लालच आ चुका था।
जमींदार सोचने लगा कि सौ मण तो पक्की है ही , कुछ और किया जाए ।
सभी लोग दिन भर बाजरा की कटाई करते रहते और जमींदार भी दिनभर अपना काम करता , पर वह रात को और आस पास के खेतों से भी बाजरा चुराकर लाने लगा।
रोजाना चार-पाँच गठरियाँ लाकर वह अपने बाजरे में मिला देता।
आखिरकार वो दिन आ गया जब जमींदार के खेत का सारा बाजरा कट गया और जमींदार भी मन ही मन खुश था कि इस बार खूब फसल हो गई ।
जमींदार ने बाजरा निकाल कर ढ़ेर लगा रखा था कि उसे वो महाराज जी आज फिर आते दिखाई दिए| जमींदार लपककर उनके पास गया और हालचाल पूछकर बोला कि क्या लगता है महाराज जी कितना बाजरा हुआ होगा?
महाराज जी बोले मैंनें तो तभी बता दिया था।
जमींदार- महाराज जी आप बिल्कुल झूठे हो , यह बाजरा सौ मण से ज्यादा है ।
महाराज- हो ही नहीं सकता , तौल कर देख लेते है ं।
जमींदार भागकर गाँव से काँटा ले आया और फसल को तौला तो उसके होश उड़ गए , पूरी सौ मण ।
तब भगवान ने अपना असली रूप उसे दिखाया और कहा कि जितना बाजरा तू औरों के खेतों से लाता रहा , तेरे जाने के बाद मैं उसे वापिस उनके खेतों में छोड़ आता था।
क्योंकि इंसान को उतना ही मिलता है जितना भाग्य में लिखा है ।
(2) जाट और ब्राह्मण
हमारे पंडित जी, श्री हरिप्रसाद जी काशी पढ़कर अपने गाँव वापिस लौटे , तो सोचा कि अब राजा के दरबार में जाया करेंगे। वहाँ राजा से कुछ इनाम मिल जाया करेगा और इज्जत भी खूब होगी।
अगले दिन पंडित जी नहा धोकर , माथे में लंबा सा तिलक लगाकर दरबार में जा पहुँचे।
राजा ने देखते ही अभिवादन किया " आओ पंडित जी, बड़े दिनों बाद दर्शन दिए, कहाँ थे इतने दिन ?"
पंडित जी ने पूरा रौब जमाते हुए कहा " राजा साहब, हमारे देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से काशी गया था। "
राजा - ये तो हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है, कि हमारे दरबार में काशी पढ़े हुए विद्वान मौजूद है ं।
राजा ने पंडित जी का खूब आदर-सत्कार किया, अच्छी खातिर की।
फिर यकायक राजा बोले - पंडित जी ये बताइए कि पहले मैं मरूँगा या मेरी रानी ?
पंडित जी के रंग में भंग पड़ गया। कुछ देर इधर-उधर अपने पोथी-पतरों में झांककर बोले , "महाराज इस प्रश्न के उतर के लिए मुझे एक महीने का वक्त दें।"
राजा ने पंडित जी को एक महीने की मुहल्लत दे दी।
पंडित जी ने एक महीने तक दिल्ली , बॉम्बे , काशी और न जाने कहाँ-कहाँ के पंडितों से ये प्रश्न पूछा, पर कहीं इसका जवाब न मिला, सब यही कहते कि ये तो सिर्फ ऊपर वाला ही जानता है ।
एक महीने तक खाक छानने के बाद वो दिन आ गया ।
पंडित जी बदहाल, भूखे, प्यासे गाँव वापिस आ रहे थे।
गाँव के बाहर ही उनके एक जाट मित्र का खेत था। जाट खेत में काम कर रहा था। अपने मित्र का ये हाल देखकर जाट ने पंडित को बुलाकर सारा माजरा पूछ लिया।
जाट - बस , इतनी सी बात ! मुझे पहले बता दिया होता।
चिंता मत कर, मैं बता दूँगा । पहले तू हाथ मुँह धोले, खाना खाले , हुक्का पानी पीले , फिर आराम से चलेंगें दरबार में ।
पंडित को ढ़ांढ़स बंधा । उसने खाना खाया और कुछ देर आराम किया। फिर बोला , भाई मेरे एक महीने की मुहल्लत का आज आखिरी दिन है । अगर आज मैं जवाब लेकर हाजिर न हुआ तो राम जाने राजा मुझे क्या सजा दे?
जाट- फिक्र मत कर, आजा चलते है ं।
दोनों दरबार की ओर चल दिए|
दरबार में पहुँचते ही राजा ने कहा - आओ पंडित जी आओ ! वक्त के बड़े पाबंद है ं आप।
राजा- ये कौन हैं पंडित जी?
पंडित जी- ये मेरे गुरूदेव है ं , राजा साहब ।
राजा ने गुरूदेव को प्रणाम किया , उन दोनों को बिठाया।
और फिर पूछा -
हाँ, तो पंडित जी, मैंने जो प्रश्न पूछा था उसका जवाब भी बता दीजिए।
पंडित जी - राजा साहब, आज मेरे गुरूदेव मेरे साथ है ं।
यही बताएंगे उतर ।
राजा - हाँ हाँ ! हमें कोई ऐतराज नहीं है । तो बताइए गुरूदेव ।
जाट ने लंबी उबासी लेते हुए कहा - देखिए राजा साहब, आप दोनों में से पहले मरेगी आपकी रानी । और अगर ऐसा न हुआ तो जो सजा दे ं मुझे मंजूर होगी।
इतना सुनते ही राजा को विश्वास आ गया । राजा बड़ा खुश हुआ कि पहले रानी मरेगी। उसने जाट को सोने , अशर्फियों, मोहरों से लाद दिया ।
जाट अपना इनाम समेटकर चल दिया ।
पंडित जी अभी तक सदमे में थे। जाट थोड़ी ही दूर गया होगा, पंडित जी दौड़कर पहुँच गए और बोले " यार, आधा हिस्सा तो दे दे।"
जाट - अच्छा ! थोड़ी देर पहले तो तू जान बचाने के लिए भीख माँग रहा था । अब तुझे आधा हिस्सा चाहिए , चल जा यहाँ से । मैं फूटी कौड़ी भी न दूँगा।
पंडित जी - अरे हिस्सा नहीं देना, मत दे । पर ये तो बताता जा कि ऐसे प्रश्नों का उत्तर कैसे पता चलता है?
जाट - देख भाई पंडित! अगर रानी पहले मरी तो मैं सही हूँ ही । और अगर राजा मर गया तो ये रानी बचेगी । ये मेरा बिगाड़ ही क्या लेगी ?
पंडित जी ने माथा पकड़ लिया।
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