A poem about winter's beauty
सर्दी का भी अजब मिजाज है
आते ही इसके सब ठिठुरने लगे
सर्द हवाओं में सब सिकुड़ने लगे
आग के चारों तरफ घेरा है
धुंध से लिपटा धुंधला सा सवेरा है
पहले जो उड़ते थे आसमां में
अब घोंसलों में उनका बसेरा है
सर्दी के कहर का ये तो बस आगाज है
सूरज के सामने दबती सर्दी की आवाज है
सूरज थोड़ी राहत लेकर आता तो है
आते ही धुंध को भगाता तो है
जो देखते थे सूरज को खिड़कियों से कभी-कभी
उनकी नज़रें धूप से मिलाता तो है
सूरज और सर्दी की टक्कर में
न जाने कौन जीत जाएगा
पर यूं ही सर्दी से छिपते-छिपाते
ये मौसम भी बीत जाएगा।
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