कहानी पंचों की | very funny story of rural area

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 Best funny Hindi story of village life


कहानी चार पंचों की -

तो भाईयो, बात उस समय की है, जब कानून से पहले और ऊपर पंचायत का फैसला होता था। 
एक गाँव के चार पंचों के पास एक दूसरे गाँव के कोई जमीन के विवाद के लिए पंचायत का बुलावा आया।
सभी पंच जाने के लिए तैयार हो गए और सुबह सात बजे निकलने का समय तय किया गया ।




दरअसल, वे चारों पंच हर समय एकदम बन-ठन के और चौधरी बनकर रहते थे। 

दूसरे दिन सुबह के सात बजे तय समय पर चारों पंच गाँव से निकले । जिस गाँव में पंचायत होनी थी वो पंचों के गाँव से काफी दूर था ।
उस गाँव तक पहुँचते-पहुँचते चारों पंच बुरी तरह थक गए। और सब भूख के मारे मर रहे थे। चारों को झटका तो तब लगा जब उन्हें पता चला कि उनके पहुँचने से पहले ही पंचायत का फैसला हो चुका था और विवाद हल करके सब अपने-अपने घर जा चुके थे।

अब चारों पंचों की अकड़, शान और नखरे घुटनों पर आ चुके थे। वापिस जाने के सिवा और रास्ता ही क्या था ?
चारों उस गाँव से निकल ही रहे थे कि उन्हें एक घर से गरमा-गरम रोटियों की खुशबू ऐसी लगी जैसे कई बरसों के भूखे हों।

तय हुआ कि सब बारी-बारी से जाएंगे और खाना खाकर आएंगे। और बाकी लोग गाँव के बाहर प्याऊ पर बैठे इंतजार करेंगे।
पहले एक पंच ने जाने की जिद की और चले भी गए।
अंदर एक औरत चूल्हे पर गरमा-गरम रोटियाँ सेक रही थी।




पंच साहब ने विनम्रता से अपना हाल बताया और खाने की गुजारिश की। पर शायद वो गलत घर में आ गए थे।

औरत ने पंच साहब से कहा - खाना तो मैं एक शर्त पर खिलाऊंगी।
पंच - मुझे हर शर्त मंजूर है। बताइए क्या शर्त है?

औरत - अगर आप मुझे ऐसी कहानी सुनाएं जो आज से पहले न तो किसी ने कही हो, न किसी ने सुनी हो, और न किसी ने देखी हो । 
ऐसी कहानी अगर आपने सुना दी तो आपको खाना खिलाऊंगी और अगर नहीं सुना पाए तो यहाँ से घसीटकर चौक के बीच में ले जा छोडूंगी।

पंच साहब तो हिल गए । ऐसी कहानी तो वो नहीं सुना पाए । और वादे के मुताबिक उनके साथ वही किया गया जो उन्हें पहले बताया था।
पंच साहब चौक से उठे, कपड़े साफ किए और प्याऊ पर इंतजार में बैठे बाकी पंचों के पास जाकर मुँह पर हाथ फेरा, झूठी डकार ली और बोले - भई खाना खाकर मजा आ गया। एकदम गरमा-गरम ।

ये सुनते ही दूसरे पंच साहब भी उस घर की तरफ दौड़े और उनके साथ भी वही हुआ, वो भी उसी तरह बेईज्जत हुए, पर मजाल कि अपने दोस्तों को बतादें। उन्होंने भी यही कहा कि - खाना लाजवाब था । 
ऐसे ही बाकियों का भी नंबर आ गया।

पर सबसे आखिरी जो पंच था मुनसी राम, वो इन सबसे अलग और शातिर था। अब वो पहुँच चुका था। उसके सामने भी वही शर्त रखी गई।
मुनसी - ऐसी कहानी तो मैं बाद में बताऊंगा पर पहले तुम जाकर वो मुफ्त में बंट रही गुड़ की भेली (पाँच किलो गुड़ की चक्की) तो ले आओ। कोई ऊँटगाड़ी वाला बाँट रहा है कहीं ऐसा न हो तुम रह जाओ।

इतना सुनते ही वो औरत बोली - मैं आऊं तब तक घर का ध्यान रखना। 
ये कहकर वो औरत भेली लेने भागी।
इतने में वहाँ एक बाबाजी भिक्षा माँगने के लिए आए। तो बाबाजी को भी मुनसी ने वही भेली वाली बात बताई और बोला - बाबाजी, ये झोली तो आप यहाँ टाँग दीजिए और जल्दी जाकर वो भेली वाले को ढूँढिए।




बाबाजी भी झोली टाँगकर भाग गए।

अब आए उस औरत के पति। तो भैया मुनसी जी ने उन्हें कहा कि आपकी पत्नी एक बाबाजी के साथ भाग गई है।
ये देखो झोली यहीं टाँग गए बाबाजी।

इतना सुनते ही वो भी भागा। किसी बाहर वाले से पूछा तो यही बोले कि यहाँ से एक बाबाजी और औरत गए तो थे।

उधर कोई खेत में गए ऊँटगाड़ी के निशान देखकर औरत और बाबाजी भागे जा रहे थे। उनके बीच में थोड़ा ही फासला था।
उधर से उस औरत का पति भी वहाँ पहुँच गया । उन्हें देखकर उसे पक्का यकीन हो गया। उसके हाथ में एक बड़ा लट्ठ था। पहुँचते ही चार-पाँच तो मारे उस बाबाजी के और चार-पाँच मारे अपनी पत्नी के, और घर तक उसे पीटता हुआ लाया।

रोती चिल्लाती सुनते ही पड़ोसनें भी आ पहुँची। पर आगे फिर हमारे मुनसी राम जी बैठे थे। पड़ोसनों को बोले - जी, दरअसल इनके पिताजी चल बसे, इसीलिए रो रही हैं।
पड़ोंसने भी उस औरत के पास आकर रोने लगीं। तब उस औरत ने उनसे पूछा कि वो क्यों रही हैं। तब उन्होंने बताया कि वो बाहर जो बैठे हैं उन्होंने कहा कि आपके पिताजी नहीं रहे।

तब उस औरत ने मुनसी राम के पास जाकर कहा - हे मेरे बाप ! क्या चाहिए तुझे ? मैंने क्या बिगाड़ा है तेरा ?

तब मुनसी राम जी बोले - आपने ही कहा था ऐसी कहानी सुनाने को। आपने कहीं देखी है ऐसी कहानी ? सुनी है ?
कही गई है आज तक ?
तो औरत बोली - मुझे माफ कर दो भाईसाहब! आ जाओ, आप खाना खालो और मुझे बख्श दो। और तो और उन अपने साथियों को भी बुला लो। वो भी खा लेंगे।

सब पंचों ने पेट भर कर खाना खाया और गाँव की तरफ चल दिए।

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